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Aatma Bhakti / आत्म-भक्ति

कविश्री मनोहरलाल वर्णी ‘सहजानंद’

मेरे शाश्वत-शरण, सत्य-तारणतरण ब्रह्म प्यारे |
तेरी भक्ति में क्षण जायें सारे || टेक||
ज्ञान से ज्ञान में ज्ञान ही हो, कल्पनाओं का एकदम विलय हो |
भ्रांति का नाश हो, शांति का वास हो, ब्रह्म प्यारे |
तेरी भक्ति में क्षण जायें सारे ||१||

सर्वगतियों में रह गति से न्यारे, सर्वभावों में रह उनसे न्यारे |
सर्वगत आत्मगत, रत न नाहीं विरत, ब्रह्म प्यारे |
तेरी भक्ति में क्षण जायें सारे ||२||

सिद्धि जिनने भी अबतक है पाई, तेरा आश्रय ही उसमें सहाई |
मेरे संकटहरण, ज्ञान-दर्शन-चरण, ब्रह्म प्यारे |
तेरी भक्ति में क्षण जायें सारे ||३||

देह-कर्मादि सब जग से न्यारे, गुण व पर्यय के भेदों से पारे |
नित्य अन्त:अचल, गुप्त ज्ञायक अमल, ब्रह्म प्यारे |
तेरी भक्ति में क्षण जायें सारे ||४||

आपका आप ही श्रेय तू है, सर्व श्रेयों में नित श्रेय तू है |
सहजानंदी प्रभो, अन्तर्यामी विभो, ब्रह्म प्यारे |
तेरी भक्ति में क्षण जायें सारे ||५||