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Aatma-Raman / आत्म-रमण

कविश्री मनोहरलाल वर्णी ‘सहजानंद’

मैं दर्शन-ज्ञान-स्वरूपी हूँ, मैं सहजानंद-स्वरूपी हूँ |
हूँ ज्ञानमात्र परभाव शून्य, हूँ सहज-ज्ञानघन स्वयंपूर्ण |
हूँ सत्य-सहज आनंद धाम, मैं सहजानंद-स्वरूपी हूँ ||१||

हूँ खुद का ही कर्ता भोक्ता, पर में मेरा कुछ काम नहीं |
पर का न प्रवेश, न कार्य यहाँ, मैं सहजानंद-स्वरूपी हूँ ||२||

आऊँ, उतरूँ, रम लूँ निज में, निज की निज में दुविधा ही क्या |
निज-अनुभव-रस से सहज-तृप्त, मैं सहजानंद-स्वरूपी हूँ ||३||