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Sambodhan / सम्बोधन

सदा संतोष कर प्राणी, अगर सुख से रहा चाहे,
घटा दे मन की तृष्णा को, अगर अपना भला चाहे |
आग में जिस कदर ईंधन, पडे़गा ज्योति ऊँची हो,
बढ़ा मत लोभ की तृष्णा, अगर दु:ख से बचा चाहे ||१||

वही धनवान है जग में, लोभ जिसके नहीं मन में,
वह निर्धन रंक होता है, जो परधन को हरा चाहे ||२||

दु:खी रहते हैं वह निश दिन, जो आरत ध्यान करते हैं,
न कर लालच अगर आजाद, रहने का मजा चाहे ||३||

बिना माँगे मिले मोती, न्याय मत देख दुनियाँ में,
भीख माँगे नहीं मिलती, अगर कोई गहा चाहे ||४||