Click Here for Free Matrimonial Registration at Jain4Jain.com   Get Premuim Membership to Contact Profiles   

Samucchay Mahaargh / समुच्चय महार्घ्य

(गीता छंद)

मैं देव श्री अरिहन्त पूजूँ सिद्ध पूजूँ चाव सों |
आचार्य श्री उवझाय पूजूँ साधु पूजूँ भाव सों ||१||

अरिहन्त-भाषित बैन पूजूँ द्वादशांग रचे गणी |
पूजूँ दिगम्बर-गुरुचरण शिव-हेतु सब आशा हनी ||२||

सर्वज्ञ-भाषित धर्म-दशविधि दया-मय पूजूँ सदा |
जजुँ भावना-षोडश रत्नत्रय जा बिना शिव नहिं कदा ||३||

त्रैलौक्य के कृत्रिम-अकृत्रिम चैत्य-चैत्यालय जजूँ |
पण-मेरु नंदीश्वर-जिनालय खचर-सुर-पूजित भजूँ ||४||

कैलास श्री सम्मेद श्री गिरनार गिरि पूजूँ सदा |
चम्पापुरी पावापुरी पुनि और तीरथ सर्वदा ||५||

चौबीस श्री जिनराज पूजूँ बीस क्षेत्र विदेह के |
नामावली इक-सहस-वसु जपि होंय पति शिवगेह के ||६||

(दोहा)

जल गंधाक्षत पुष्प चरु, दीप धूप फल लाय |
सर्व पूज्य-पद पूजहूँ, बहुविधि-भक्ति बढ़ाय ||७||

महार्घ्य मंत्र (संस्कृत)

ॐ ह्रीं अरिहंत्सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधुभ्यो द्वादशांगजिनागमेभ्यो उत्तमक्षमादि-दशलक्षण-धर्माय दर्शनविशुद्ध्यादि-षोडशकारणेभ्यो
सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान-सम्यक्चारित्रेभ्यो त्रिलोकस्थित जिनबिम्बेभ्यो पंचमेरु-सम्बन्धि-अशीति-जिनचैत्यालयस्थ जिनबिम्बेभ्यो
नंदीश्वर-द्वीप-सम्बन्धि-द्विपंचाशत्-जिनालयस्थ जिनबिम्बेभ्य: सम्मेदाष्टापद- ऊर्जयन्तगिरि-चम्पापुर-पावापुर्यादि सिद्धक्षेत्रेभ्य: सातिशयक्षेत्रेभ्यो
विद्यमान-विंशति-तीर्थंकरेभ्यो अष्टाधिक-सहस्रजिननामेभ्यो श्रीवृषभादि चतुर्विंशति-तीर्थंकरेभ्यो जलादि महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

अथवा

संस्कृत मिश्रित हिन्दी मन्त्र

ॐ ह्रीं भावपूजा भाववंदना त्रिकालपूजा त्रिकालवंदना करें करावें भावना भावें श्रीअरिहंतजी सिद्धजी आचार्यजी उपाध्यायजी सर्वसाधुजी पंच-परमेष्ठिभ्यो नम:,
प्रथमानुयोग-करणानुयोग-चरणानुयोग-द्रव्यानुयोगेभ्यो नम:, दर्शनविशुद्ध्यादि-षोडशकारणेभ्यो नम:, उत्तमक्षमादि- दशलाक्षणिकधर्माय नम:, सम्यग्दर्शन- सम्यग्ज्ञान-सम्यक्चारित्रेभ्यो नम:,
जल के विषै, थल के विषै, आकाश के विषै, गुफा के विषै, पहाड़ के विषै, नगर-नगरी विषै उर्ध्वलोक- मध्यलोक- पाताललोक विषै विराजमान कृत्रिम-अकृत्रिम जिन-चैत्यालय-जिनबिम्बेभ्यो नम:,
विदेहक्षेत्रे विहरमान बीस-तीर्थकरेभ्यो नम:, पाँच भरत पाँच ऐरावत दशक्षेत्र-सम्बन्धि तीस चौबीसी के सातसौ बीस जिनराजेभ्यो नम:, नन्दीश्वरद्वीप-सम्बन्धी बावन- जिनचैत्यालयस्थ- जिनबिम्बेभ्यो नम:,
पंचमेरुसम्बन्धि-अस्सी-जिनचैत्यालयस्थ जिनबिम्बेभ्यो नम:, सम्मेदशिखर कैलाश चंपापुर पावापुर गिरनार सोनागिर मथुरा तारंगा आदि सिद्धक्षेत्रेभ्यो नम:,
जैनबद्री मूडबिद्री देवगढ़ चन्देरी पपौरा हस्तिनापुर अयोध्या राजगृही चमत्कारजी श्रीमहावीरजी पद्मपुरी तिजारा बड़ागांव आदि अतिशयक्षेत्रेभ्यो नम:, श्री चारणऋद्धिधारी सप्तपरमषिऋभ्यो नम:,
ओं ह्रीं श्रीमंतं भगवन्तं कृपावन्तं श्रीवृषभादि महावीरपर्यन्तं चतुविंर्शति-तीर्थंकरं-परमदेवं आद्यानां आद्ये जम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रे आर्यखंडे उत्तमे नगरे मासानामुत्तमे मासे
उत्तमे पक्षे उत्तमे तिथौ उत्तमे वासरे मुनि-आर्यिकानां श्रावक-श्राविकाणां स्वकीय सकल-कर्म क्षयार्थं अनर्घ्यपद-प्राप्तये जलधारा सहित महार्घ्यं सम्पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
(मास, पक्ष, दिन की जानकारी ना होने पर “उत्तमे” का प्रयोग करें)
* * * * *