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Shri Chanda Prabhu Chalisa (Dehra Tijara) / श्री चन्द्र प्रभु चालीसा (देहरा तिजारा)

वीतराग सर्वज्ञ जिन, जिनवाणी को ध्याय |
लिखने का साहस करूँ, चालीसा सिर-नाय ||१||

देहरे के श्री चंद्र को, पूजौं मन-वच-काय ||
ऋद्धि-सिद्धि मंगल करें, विघ्न दूर हो जाय ||२||

जय श्री चंद्र दया के सागर, देहरेवाले ज्ञान-उजागर ||३||
शांति-छवि मूरति अति-प्यारी, भेष-दिगम्बर धारा भारी ||४||
नासा पर है दृष्टि तुम्हारी, मोहनी-मूरति कितनी प्यारी |५||
देवों के तुम देव कहावो, कष्ट भक्त के दूर हटावो ||६||
समंतभद्र मुनिवर ने ध्याया, पिंडी फटी दर्श तुम पाया ||७||
तुम जग में सर्वज्ञ कहावो, अष्टम-तीर्थंकर कहलावो ||८||
महासेन के राजदुलारे, मात सुलक्षणा के हो प्यारे ||९||
चंद्रपुरी नगरी अतिनामी, जन्म लिया चंद्र-प्रभ स्वामी ||१०||
पौष-वदी-ग्यारस को जन्मे, नर-नारी हरषे तब मन में ||११||
काम-क्रोध-तृष्णा दु:खकारी, त्याग सुखद मुनिदीक्षा-धारी ||१२||
फाल्गुन-वदी-सप्तमी भाई, केवलज्ञान हुआ सुखदाई ||१३||
फिर सम्मेद-शिखर पर जाके, मोक्ष गये प्रभु आप वहाँ से ||१४||
लोभ-मोह और छोड़ी माया, तुमने मान-कषाय नसाया ||१५||
रागी नहीं नहीं तू द्वेषी, वीतराग तू हित-उपदेशी ||१६||
पंचम-काल महा दु:खदाई, धर्म-कर्म भूले सब भाई ||१७||
अलवर-प्रांत में नगर तिजारा, होय जहाँ पर दर्शन प्यारा ||१८||
उत्तर-दिशि में देहरा-माँहीं, वहाँ आकर प्रभुता प्रगटाई ||१९||
सावन सुदि दशमी शुभ नामी, प्रकट भये त्रिभुवन के स्वामी ||२०||
चिहन चंद्र का लख नर-नारी, चंद्रप्रभ की मूरती मानी ||२१||
मूर्ति आपकी अति-उजियाली, लगता हीरा भी है जाली ||२२||
अतिशय चंद्रप्रभ का भारी, सुनकर आते यात्री भारी ||२३||
फाल्गुन-सुदी-सप्तमी प्यारी, जुड़ता है मेला यहाँ भारी ||२४||
कहलाने को तो शशिधर हो, तेज-पुंज रवि से बढ़कर हो ||२५||
नाम तुम्हारा जग में साँचा, ध्यावत भागत भूत-पिशाचा ||२६||
राक्षस-भूत-प्रेत सब भागें, तुम सुमिरत भय कभी न लागे ||२७||
कीर्ति तुम्हारी है अतिभारी, गुण गाते नित नर और नारी ||२८||
जिस पर होती कृपा तुम्हारी, संकट झट कटता है भारी ||२९||
जो भी जैसी आश लगाता, पूरी उसे तुरत कर पाता ||३०||
दु:खिया दर पर जो आते हैं, संकट सब खोकर जाते हैं ||३१||
खुला सभी हित प्रभु-द्वार है, चमत्कार को नमस्कार है ||३२||
अंधा भी यदि ध्यान लगावे, उसके नेत्र शीघ्र खुल जावें ||३३||
बहरा भी सुनने लग जावे, पगले का पागलपन जावे ||३४||
अखंड-ज्योति का घृत जो लगावे, संकट उसका सब कट जावे ||३५||
चरणों की रज अति-सुखकारी, दु:ख-दरिद्र सब नाशनहारी ||३६||
चालीसा जो मन से ध्यावे,पुत्र-पौत्र सब सम्पति पावे ||३७||
पार करो दु:खियों की नैया, स्वामी तुम बिन नहीं खिवैया ||३८||
प्रभु मैं तुम से कुछ नहिं चाहूँ, दर्श तिहारा निश-दिन पाऊँ ||३९||

करूँ वंदना आपकी, श्री चंद्रप्रभ जिनराज |
जंगल में मंगल कियो, रखो ‘सुरेश’ की लाज ||४०||