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Shri Jambu Swami Pooja / श्री जम्बू स्वामी पूजा

आर्यिका स्वस्तिभूषणमती जी

(पूजन विधि निर्देश)

(शंभू छन्द)

क्रम-अंत में मुक्ति पा कर, सिद्धालय जा वास कियाI
वीर प्रभू के शिष्य अनुपम, वीर प्रभू पथ गमन किया ||
दिव्य तेज आतम की शक्ति, तप से पाकर धन्य हुएI
जम्बू स्वामी को पूजें हम, पंचम काल में सिद्ध हुए ||
ॐ ह्रीं श्री जम्बू स्वामी जिनेन्द्र! अत्र अवतर! अवतर! संवौषट्! (आह्वाननं)
ॐ ह्रीं श्री जम्बू स्वामी जिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:! ठ:! (स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्री जम्बू स्वामी जिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्! (सन्निधिकरणम्)

प्यासी आतम की ध्ररती है, हम तन की भूमि सींच रहेI
आतम का बाग तो सूखा है, तन से कर्मों को खींच रहेII
जम्बू स्वामी ने आत्म-ज्ञान कर, आतम रूप निखारा हैI
अब हम उनकी पूजा करते, और निज का रूप निहारा हैII
ॐ ह्रीं श्री जम्बू स्वामी जिनेन्द्राय जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।

समता से ज्यादा शीतलता, जग में न कहीं मिल पायेगीI
कर के देखो बस एक बार, सच्ची शीतलता आयेगीII
जम्बू स्वामी ने आत्म-ज्ञान कर, आतम रूप निखारा हैI
अब हम उनकी पूजा करते, और निज का रूप निहारा हैII
ॐ ह्रीं श्री जम्बू स्वामी जिनेन्द्राय संसार-ताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।

संसार में भागम-भाग मची, पर प्रभू हमारे स्थिर हैंI
अक्षयपद से ही शांति मिले, जग का पद तो अस्थिर हैII
जम्बू स्वामी ने आत्म-ज्ञान कर, आतम रूप निखारा हैI
अब हम उनकी पूजा करते, और निज का रूप निहारा हैII
ॐ ह्रीं श्री जम्बू स्वामी जिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्ताय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।

भोगों के भंवरे घूम रहे, जग में बस इनसे बचना हैI
हो काम बाण का नाश प्रभो! इसमें ना हमको फँसना है |
जम्बू स्वामी ने आत्म-ज्ञान कर, आतम रूप निखारा हैI
अब हम उनकी पूजा करते, और निज का रूप निहारा है ||
ॐ ह्रीं श्री जम्बू स्वामी जिनेन्द्राय कामबाण विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।

नर पशु में ये ही अंतर है, नर संयम धर के महान बनेI
पशु बस खाने को जीता है, नर तप कर के भगवान बनेII
जम्बू स्वामी ने आत्म-ज्ञान कर, आतम रूप निखारा हैI
अब हम उनकी पूजा करते, और निज का रूप निहारा है ||
ॐ ह्रीं श्री जम्बू स्वामी जिनेन्द्राय क्षुधा-रोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।

दर्शन तप त्याग की शक्ति से, हम ज्ञान ज्योति प्रज्वलायेंगेI
मुक्ति-पथ में कर उजियारा, मुक्ति को हम भी पायेंगेII
जम्बू स्वामी ने आत्म-ज्ञान कर, आतम रूप निखारा हैI
अब हम उनकी पूजा करते, और निज का रूप निहारा हैII
ॐ ह्रीं श्री जम्बू स्वामी जिनेन्द्राय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।

पापों की सरिता में जा जा कर, मैं डुबकी नित्य लगाता हूँI
जब कर्म हमें परेशान करें, हे भगवान! तुम्हें बतलाता हूँII
जम्बू स्वामी ने आत्म-ज्ञान कर, आतम रूप निखारा हैI
अब हम उनकी पूजा करते, और निज का रूप निहारा हैII
ॐ ह्रीं श्री जम्बू स्वामी जिनेन्द्राय अष्टकर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।

जग की जिस वस्तु को छोड़ा, प्रभु हम भी उसको छोड़ेंगेI
फल तुमने जो पाया जिनवर, उस फल से नाता जोड़ेंगेII
जम्बू स्वामी ने आत्म-ज्ञान कर, आतम रूप निखारा हैI
अब हम उनकी पूजा करते, और निज का रूप निहारा हैII
ॐ ह्रीं श्री जम्बू स्वामी जिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्ताय फलं निर्वपामीति स्वाहा।

पापी मन को पावन करने, मैं गीत आपके गाता हूँI
चरणों की पूजा से भगवन्, सच्ची शांति को पाता हूँII
जम्बू स्वामी ने आत्म-ज्ञान कर, आतम रूप निखारा है,
अब हम उनकी पूजा करते, और निज का रूप निहारा है ||
ॐ ह्रीं श्रीजम्बू स्वामी जिनेन्द्राय अनर्घ्यपद प्राप्ताय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

जयमाला

(त्रिभंगी)

शुभ भाग्य हमारा, पाया द्वारा, तेरी पूजा भायी हैI
भावों की शुद्धि, सुख में वृद्धि, हे प्रभु! मेरी आयी हैII
जिन धर्म की छाया, छूटे माया, मुक्ति पथ को देती हैI
जयमाला गाऊँ, शीश झुकाऊँ, संकट सब हर लेती हैII

(शेरचाल)

इस जम्बू-द्वीप के जम्बू स्वामी को नमन|
पूजा करूँ भक्ति करूँ इस भाव से भीना मन||

सौभाग्यशाली आप हैं मुक्ति में जा बसे|
हम तो प्रभो! संसार में कर्म-कीच में हैं धंसे||

तुम ब्रह्म स्वर्ग छोड़ सेठ के यहाँ जन्मे|
खुशियाँ थी चारों ओर, सब हरषे थे मन में||

था राजगृह सुंदर नगर, थे जानते सभी|
वैभव के थे भंडार उन्हें मानते थे सभी||

सुंदर-सा बालक देख खिलाते सभी वहाँ|
नाना प्रकार क्रीड़ा से खुश होते सब वहाँ||

वे दोज चन्द्र के समान बड़े हुए थे|
रूप देख चकित से सब खड़े हुए थे ||

इक दिन किये दरश सुधर्म स्वामी देव के|
तब हो गया विराग कहा करूँ सेव मैं||

माता ने मोह में वचन बस एक ले लिया|
पूरण करो ये आस जन्म है मैंने दिया||

माता की बात मान ली औ ब्याह किया था|
पर चार रानियों ने भी मन न मोह लिया था||

संसार के सुखों की तरफ खूब रिझाया|
इक चोर ने भी आके उन्हें सही बताया ||

संसार है असार जीव चले अकेला|
परिवार माता पिता भाई जगत का मेला||

वैराग्य ज्योति जगी न मंद पड़ी है|
जग छोड़ दिया सामने दीक्षा की घड़ी है||

गुरु चरणों में जा करके मुनि दीक्षा को पाया|
चारों ही ज्ञान ने उन्हीं में वास बनाया||

गौतम सुधर्म बाद केवल ज्ञान हो गया|
उन दिव्य आत्मा से जग ये जग-मगा गया||

ओंकार ध्वनि जो खिरी सब धन्य हो गये|
आचार्य मुनि भक्त शरण में भी आ गये||

तत्त्व द्रव्य चेतना का उन्हें ज्ञान कराया|
संसार को छोड़ो सभी को ये सत्य बताया ||

चारों ही रानियां औ मां भी चरण में आई|
जब ज्ञान हुआ आ के वहां दीक्षा को पाई||

वे घोर-घोर तप करें है कर्म नशाना|
सभी करम नाश कर मुक्ति को पाना ||

फिर जम्बू स्वामी जम्बू वन में ध्यान लगाए|
आठों करम कर नाश दिव्य मुक्ति को पाए||

था पांचवां वो काल कोई रोक न पाया|
पुरुषार्थ करें ध्यान करें ज्ञान ये पाया||

हमको भी सच्चे ज्ञान का वरदान दीजिए|
हे जम्बू स्वामी! हो कल्याण ज्ञान दीजिए||

‘स्वस्ति’ ने करी भक्ति प्रभो ध्यान दीजिए|
भक्तों को लेके शरण में कल्याण कीजिए ||

(दोहा)

मथुरा की पावन धरा, उसको शीश नवायें |
जम्बू स्वामी मोक्ष गये, चरणन अर्घ्य चढ़ायें ||

धर्म गीत गाते रहें, दे दो ये वरदान |
जम्बू स्वामी चरण में, बारंबार प्रणाम ||
ॐ ह्रीं श्रीजम्बू स्वामी जिनेन्द्राय अनर्घ्य पद प्राप्तये जयमाला-पूर्णार्घ्यं निर्वपामिति स्वाहा।
।।पुष्पांजलिं क्षिपेत्।|