अपराजित तें आय नाथ मिथलापुर जाये |
कुंभराय के नन्द, प्रभावति मात बताये ||
कनक वरन तन तुंग, धनुष पच्चीस विराजे |
सो प्रभु तिष्ठहु आय निकट मम ज्यों भ्रम भाजे ||
ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् |
ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः |
ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ||
सुर-सरिता-जल उज्ज्वल ले कर, मनिभृंगार भराई |
जनम जरामृतु नाशन कारन, जजहूं चरन जिनराई ||
राग-दोष-मद-मोह हरन को, तुम ही हो वरवीरा |
यातें शरन गही जगपतिजी, वेगि हरो भवपीरा ||
ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि0स्वाहा |1||
बावनचंदन कदली नंदन, कुंकुमसंग घिसायो |
लेकर पूजौं चरनकमल प्रभु, भवआताप नसायो ||
राग-दोष-मद-मोह हरन को, तुम ही हो वरवीरा |
यातें शरन गही जगपतिजी, वेगि हरो भवपीरा ||
ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं नि0स्वाहा |2||
तंदुल शशिसम उज्ज्वल लीने, दीने पुंज सुहाई |
नाचत गावत भगति करत ही, तुरित अखैपद पाई ||राग0
ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि0स्वाहा |3||
पारिजात मंदार सुमन, संतान जनित महकाई |
मार सुभट मद भंजनकारन, जजहुं तुम्हें शिरनाई ||राग0
ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि0स्वाहा |4||
फेनी गोझा मोदन मोदक, आदिक सद्य उपाई |
सो लै छुधा निवारन कारन जजहुं चरन लवलाई ||राग0
ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यं नि0स्वाहा |5||
तिमिरमोह उरमंदिर मेरे, छाय रह्यो दुखदाई |
तासु नाश कारन को दीपक, अद्भुत जोति जगाई ||राग0
ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं नि0स्वाहा |6||
अगर तगर कृष्णागर चंदन चूरि सुगंध बनाई |
अष्टकरम जारन को तुम ढिग, खेवत हौं जिनराई ||राग0
ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि0स्वाहा |7||
श्रीफल लौंग बदाम छुहारा, एला केला लाई |
मोक्ष महाफल दाय जानिके, पूजैं मन हरखाई ||राग0
ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं नि0स्वाहा |8||
जल फल अरघ मिलाय गाय गुन, पूजौं भगति बढ़ाई |
शिवपदराज हेत हे श्रीधर, शरन गहो मैं आई ||
राग-दोष-मद-मोह हरन को, तुम ही हो वरवीरा |
यातें शरन गही जगपतिजी, वेगि हरो भवपीरा ||
ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि0स्वाहा |9||
(पंचकल्याणक-अर्घ्यावली)
चैत की शुद्ध एकैं भली राजई, गर्भकल्यान कल्यान को छाजई |
कुंभराजा प्रभावति माता तने, देवदेवी जजे शीश नाये घने ||
ॐ ह्रीं चैत्रशुक्लाप्रतिपदायां गर्भमंगलप्राप्ताय श्रीमल्लि0अर्घ्यं नि0 |1||
मार्गशीर्षे सुदी ग्यारसी राजई, जन्मकल्यान को द्यौस सो छाजई |
इन्द्र नागेंद्र पूजें गिरिंद जिन्हें, मैं जजौं ध्याय के शीश नावौं तिन्हें ||
ॐ ह्रीं मार्गशीर्ष-शुक्लैकादश्यां जन्ममंगलप्राप्ताय श्रीमल्लि0अर्घ्यं नि0 |2||
मार्गशीर्षे सुदीग्यारसीके दिना, राजको त्याग दीच्छा धरी है जिना |
दान गोछीरको नन्दसेने दयो, मैं जजौं जासु के पंच अचरज भयो ||
ॐ ह्रीं मार्गशीर्ष-शुक्लैकादश्यां तपोमंगलप्राप्ताय श्रीमल्लि0अर्घ्यं नि0 |3||
पौष की श्याम दूजी हने घातिया, केवलज्ञानसाम्राज्यलक्ष्मी लिया |
धर्मचक्री भये सेव शक्री करें, मैं जजौं चर्न ज्यों कर्म वक्री टरें ||
ॐ ह्रीं पौषकृष्णाद्वितीयायां केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीमल्लि0अर्घ्यं नि0 |4||
फाल्गुनी सेत पांचैं अघाती हते, सिद्ध आलै बसै जाय सम्मेदतें |
इन्द्रनागेंन्द्र कीन्ही क्रिया आयके, मैं जजौं शिव मही ध्यायके गायके ||
ॐ ह्रीं फाल्गुनशुक्लापंचम्यां मोक्षमंगलप्राप्ताय श्रीमल्लि0अर्घ्यं नि0 |5||
(जयमाला)
तुअ नमित सुरेशा, नर नागेशा, रजत नगेशा भगति भरा |
भवभयहरनेशा, सुखभरनेशा, जै जै जै शिव-रमनिवरा |1||
जय शुद्ध चिदातम देव एव, निरदोष सुगुन यह सहज टेव |
जय भ्रमतम भंजन मारतंड, भवि भवदधि तारन को तरंड |2||
जय गरभ जनम मंडित जिनेश, जय छायक समकित बुद्धभेस |
चौथे किय सातों प्रकृतिछीन, चौ अनंतानु मिथ्यात तीन |3||
सातंय किय तीनों आयु नास, फिर नवें अंश नवमें विलास |
तिन माहिं प्रकृति छत्तीस चूर, या भाँति कियो तुम ज्ञानपूर |4||
पहिले महं सोलह कहँ प्रजाल, निद्रानिद्रा प्रचलाप्रचाल |
हनि थानगृद्धि को सकल कुब्ब, नर तिर्यग्गति गत्यानुपुब्ब |5||
इक बे ते चौ इन्द्रीय जात, थावर आतप उद्योत घात |
सूच्छम साधारन एक चूर, पुनि दुतिय अंश वसु कर्यो दूर |6||
चौ प्रत्याप्रत्याख्यान चार, तीजे सु नपुंसक वेद टार |
चौथे तियवेद विनाशकीन, पांचें हास्यादिक छहों छीन |7||
नर वेद छठें छय नियत धीर, सातयें संज्ज्वलन क्रोध चीर |
आठवें संज्ज्वलन मान भान, नवमें माया संज्ज्वलन हान |8||
इमि घात नवें दशमें पधार, संज्ज्वलन लोभ तित हू विदार |
पुनि द्वादशके द्वय अंश माहिं, सोलह चकचूर कियो जिनाहिं |9||
निद्रा प्रचला इक भाग माहिं, दुति अंश चतुर्दश नाश जाहिं |
ज्ञानावरनी पन दरश चार, अरि अंतराय पांचो प्रहार |10||
इमि छय त्रेशठ केवल उपाय, धरमोपदेश दीन्हों जिनाय |
नव केवललब्धि विराजमान, जय तेरमगुन तिथि गुनअमान |11||
गत चौदहमें द्वै भाग तत्र, क्षय कीन बहत्तर तेरहत्र |
वेदनी असाता को विनाश, औदारि विक्रियाहार नाश |12||
तैजस्य कारमानों मिलाय, तन पंच पंच बंधन विलाय |
संघात पंच घाते महंत, त्रय अंगोपांग सहित भनंत |13||
संठान संहनन छह छहेव, रसवरन पंच वसु फरस भेव |
जुग गंध देवगति सहित पुव्व, पुनि अगुरुलघु उस्वास दुव्व |14||
परउपघातक सुविहाय नाम, जुत असुभगमन प्रत्येक खाम |
अपरज थिर अथिर अशुभ सुभेव, दुरभाग सुसुर दुस्सुर अभेव |15||
अन आदर और अजस्य कित्त, निरमान नीचे गोतौ विचित्त |
ये प्रथम बहत्तर दिय खपाय, तब दूजे में तेरह नशाय |16||
पहले सातावेदनी जाय, नर आयु मनुषगति को नशाय |
मानुष गत्यानु सु पूरवीय, पंचेंद्रिय जात प्रकृति विधिय |17||
त्रसवादर पर्जापति सुभाग, आदरजुत उत्तम गोत पाग |
जसकीरती तीरथप्रकृति जुक्त, ए तेरह छयकरि भये मुक्त |18||
जय गुनअनंत अविकार धार, वरनत गनधर नहिं लहत पार |
ताकों मैं वंदौं बार बार, मेरी आपत उद्धार धार |19||
सम्मेदशैल सुरपति नमंत, तब मुकतथान अनुपम लसंत |
वृन्दावन वंदत प्रीति-लाय, मम उर में तिष्ठहु हे जिनाय |20||
जय जय जिनस्वामी, त्रिभुवननामी, मल्लि विमल कल्यानकरा |
भवदंदविदारन आनंद कारन, भविकुमोद निशिईश वरा |21|
ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||
जजें हैं जो प्रानी दरब अरु भावादि विधि सों,
करैं नाना भाँति भगति थुति औ नौति सुधि सों |
लहै शक्री चक्री सकल सुख सौभाग्य तिनको,
तथा मोक्ष जावे जजत जन जो मल्लिजिन को |||
इत्याशीर्वादः (पुष्पांजलिं क्षिपेत्)